मोहर्रम 2023: कर्बला का वाकिया | Battle of karbla

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मुहर्रम (Muharram 2023) एक इस्लामि साल का पहला महीना है। इस महीने को मुस्लिम लोग बहुत ही दिल-ओ-जान से इमाम हुसैन ओर कर्बला की शोहदाओं को याद करते है। और कर्बला की जंग को इस्लाम के फैलने का श्रय देते है। यह एक ऐसा त्योहार है जिसेमें शीआ लोग शोक मनाते है। के उनके कौम के लोग इमाम हुसैन को शहीद किया। इमाम हुसैन और उनके साथियों के बलिदान को याद करते हुए इस त्योहार को मनाया जाता है।

इस अवसर पर, शिया मुस्लिम समुदाय ताजिया निकालने का आयोजन करते है, जिसमें इमाम हुसैन की शहादत को याद किया जाता है। मुहर्रम के दिनों में लोग काले लिबास पहनकर मातम करते हुए ताजिया निकालते हैं और शोक मनाते हैं। इस त्योहार में शोक और संवेदना का माहौल होता है। 

कर्बला की जंग का कारण:

यह घटना मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है जो सिर्फ एक जंग ही नहीं, बल्कि जीवन के सभी पहलुओं की मार्गदर्शन करता है। इस जंग का अहम भूमिका हज़रत मुहम्मद (सलल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दुनया से पर्दा होने के के बाद से शुरू होती है। जब इमाम अली (राज़ी अल्लाहो अन्हु) खलीफा पद पर खड़े होते है। उसके बाद से ही कुछ लोगों द्वारा उन्हें स्वीकार नहीं किया गया। और मौका पाते ही उन्हें शहीद कर दिया गया और उनके बाद उनके बेटे इमाम हसन को ख़लीफ़ा बनाया गया और किसी जंग के दौरान उन्हें भी शहीद कर दिया गया। और इसी बीच अमीरुल माविया भी गुजर गए जो की उस वकत सिरिया के गवर्नर थे। उनहों ने लगभग 30 साल शासन किया और कुफा के इर्द गिर्द भी खिलाफत को अंजाम दिया करते थे। और उनका बेटा याजीद गद्दी पर बैठते ही सारे बुरे काम को लोगों के लिए आम कर दिया। जैसे की शराब पीना, जुआ खेलना, मुजरा लगवाना , जादू दिखाना और जिना आदि को आम कर दिया और ये सारे चीजें इस्लाम में हराम है। और इसी वजह से इमाम हुसैन उनके खिलाफ थे। जबकि इमाम हुसैन चाहते थे ये सब चीजें ना हो और इस्लाम मे हलाल चीजों को सविकार करें और हराम चीजों को छोड़ दिया जाए। अतः इसी कारण से कर्बला की जंग हुई। जिसमें इमाम हुसैन और उनके साथयों को शहीद कर दिया गया।

कूफा के मुसलमानों द्वारा इमाम हुसैन को आमंत्रण:

जब कूफा के मुसलमानों ने इमाम हुसैन को पैगाम भेजा के यहाँ कुफा आयें हम सब आपके साथ है। इस दरया-दिली और कुफ़े की लोगों की चाहत देख कर इमाम हुसैन ने अपने एक साथी को कुफा भेजा। के वहाँ की हालात-ए-मौजूदा और लोगों का जाइजा लेकर आएं। वहाँ की हालात और कुफ़यों की विचार को जब उनहों ने देखा तो इमाम हुसैन को अच्छा संकेत भेजा। 
इसी दौरान जब इस बात का पता याजीद को मिला तो उसने अपने वजीर को वहाँ के काबिले में भेज कर कुफा के लोगों में दहशत फैलाई और इमाम हुसैन का साथ देने पर बुरा अंजाम होने का बोला। और कुछ लोगों को वजीर के द्वारा क़तल भी किया गया। और ये वो समय था जब याजीदी लश्कर पूरे इलाके को अपने कब्जे में लेकर पूरा कंट्रोल अपने हाथ में लेलिया।

याजीद दावरा इमाम हुसैन को अपनी बात मनवाना:

इस तरह जब इमाम हुसैन अपने लश्कर के साथ जब निकले तो उनके लश्कर में बच्चे, औरत मर्द सभी हिजरत(एक जगह इस दूसरी जगह निवास करना ) के लिए निकल गए। जिसमें कुल 72 लोग थे। और इस तरह सफर करते करते जब वो कर्बला जो की इराक का शहर है वहाँ आस पास पहुंचे तो इमाम हुसैन से यजिदी लश्कर दावरा याजीद को खलीफा सविकार करने को कहा गया। जो की इमाम हुसैन जानते थे की उसे मैं खलीफा कैसे तस्लीम करलूँ जो अपना सारा काम इस्लाम के खेलाफ़ करता है अतः इमाम हुसैन याजीद को अस्वीकार किया।

फिर याजीद द्वारा जंग का ऐलान कर दिया गया। और ये दिन जुमेरात का था और यही वो जगह था जिसे कर्बला कहा गया है। जब तीन दिन तक दरया-ए-फ्रूत का पानी रोक दिया गया जो की इमाम हुसैन के खेमे के पड़ाव के निकट से जाता था। और जब याजीदी लश्कर इमाम हुसैन को मनवाने में असमर्थ रहा तो उनहों ने नहर का पानी रोक दिया इस तरह तीन दिन गुजर गए और जब पियास की शिद्दत इंतहा हो गयी तो बच्चे बिलकने लगे और सारे लोग पियास से बेहाल होने लगे। 
जरा गौर कीजये वो कर्बला का मंज़र किया होगा।  हम लोग धूप की तपिश को एक, दो घंटा भी बर्दाश्त नहीं कर सकते और पनि की तलब करते है। तो वो इमाम हुसैन और अहले बैत और उनके साथियों ने तीन दिन तक कर्बला की तपति धरती में याजीदयों का मोकाबला किया। बच्चों की पियास की तड़प देख कर गाज़ी अब्बास जो की इमाम हुसैन के भाई थे। उनहों ने इजाजत मांगी के आका मुझे इजाजत दीजए मैं दरया फ़्रूत से पानी लेऔं। जब पानी लेकर आने के दौरान याजीदयों ने गाजी अब्बास को क़तल कर दिया और वो शहीद हो गए।

इसी तरह एक के बाद एक शहीद होते गए और इमाम हुसैन याजीदी के हाथ में अपना हाथ नहीं दिया। इमाम हुसैन के लश्कर की कुल तादाद 72 थी। जिसमें  32 घोड़सवार और 40 पैदल थे। और जब ये 72 अहले ईमान वाले 3000 की यजीदी फौज के सामने आए तो सारे यजीदी पीछे हट गए। फिर याजीद ने तीर अंदाज़ों को घोड़ों पर वार करने को कहा और फिर सारे घोड़े जख्मी होगये फिर इमाम हुसैन के सारे लश्कर पैदल होगाए।

कर्बला की धरती पर इमाम हुसैन के लश्कर के पहले शहीद कौन हुए?

अब्दुल्लाह-इब्न-उमेर-अल-कलबी थे जो की कुफा के रहने वाले थे। जब वो इमाम हुसैन के पास आए और अपना परिचय दिया और कहने लगे ए इमाम हुसैन राज़ी अल्लाहो अनहों। जब मैं ने सुना के कुछ लोग जो यजीद के तरफ से आपके खिलाफ जंग के लिए आरहे है। तो मैंने कहा ये लोग नबी के नवासे से जंग करेंगे। और इसलिए मैं आपके तरफ से याजीद्यौ के खेलाफ़ जंग करने आगया अतः मुझे पहले मैदान-ए-जंग में जाने की इजाजत दें। फिर  इमाम हुसैन ने उन्हे इजाजत दी और वो याजीदी लश्कर के सालिम और यासार दोनों को एक ही वार में खाक में मिला दिया। याजीद के लश्कर वालों में से किसी ने कहा एक एक करके लड़ोगे तो सारे मारे जाओगे इन पर इकट्ठे हमला करो। और जब वो लोगों ने अब्दुल्लाह-इब्न-उमेर-अल-कलबी पर इकट्ठे वार किया तो वो  शहीद होगाए और इस तरह कर्बला के पहले शहीद अब्दुल्लाह-इब्न-उमेर-अल-कलबी हुए।

गाजी अब्बास को कैसे शहीद किया गया :

गाजी अब्बास की कद इतनी थी की घुटनों  को जमीन पर रखते तो ऊंट के पीठ पर हाथ फेरते हूए ऊंट को चारा खिलाते और उनका सीना चौड़ा और बहुत साहस था उनमें। पानी लाने के दौरान याजीदयों दावरा उन्हें पीछे से वार कर दोनों बाजू काट दिया गया। फिर भी लोग पास जाने से डरते थे और अंत में तीरंदाजों ने उनपर तीर बरसाए  तो एक तीर उनकी आँख पर लगी तब गाजी अब्बास घुटने के बल तीर को निकालने की कोशिश की क्यौं के उनके दोनों बाजू काट दिये गए थे। और जब वो झुक के घुटने के बल तीर निकालने लगे तो यजीदी लश्कर दवारा वार पर वार किए गए और गाजी अब्बास शहीद हो गए।
और इस तरह एक के बाद एक इमाम हुसैन के जान-निसार जामे शहादत को नोश करते गए। जिनका नाम  निम्न प्रकार है।

अहल-ए-बैत

हज़रत इमाम हुसैन
हज़रत अब्बास बिन आली
हज़रत आली अकबर बिन हुसैन
हज़रत आली असगर बिन हुसैन
हज़रत अब्दुल्लाह बिन आली
हज़रत जाफ़र बिन आली
हज़रत उस्मान बिन आली
हज़रत आबु-बकर बिन आली
हज़रत आबु-बकर बिन हसन बिन आली
हज़रत कासिम बिन हसन बिन आली
हजरत अब्दुल्लाह बिन हसन
हज़रत ओन बिन अब्दुल्लाह बिन जाफ़र
हज़रत मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन जाफ़र
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुस्लिम बिन अकील
हज़रत मोहम्मद बिन मुस्लिम
हज़रत मुहम्मद बिन सईद बिन अकील
हज़रत अबदूर-रेहमान बिन अकील
हजरत जाफ़र बिन अकील

बनी असद

हज़रत अनस बिन हार्स असदी
हज़रत हबीब बिन मज़ाहिर असदी
हज़रत मुस्लिम बिन औसजा असदी
हज़रत कैस बिन मशर असदी
हज़रत आबु समामा उमरु बिन अब्दुल्लाह
हज़रत बोरीर हमदनी
हज़रत हनाला बिन असद
हज़रत अबिस शाक्री
हज़रत अब्दुल रेहमान रहबी
हज़रत सैफ बिन हार्स
हज़रत आमेर बिन अब्दुल्लाह हमदानी

जहबी

हज़रत जुनदा बिन हार्स
हज़रत मजमा बिन अब्दुल्लाह
हज़रत नफे बिन हलाल
हज़रत हज्जाज बिन मसरूक(मोअज्ज़िन करबला)

अंसारी

हज़रत उमर बिन कारजा
हज़रत अब्दुल रेहमान बिन अब्द-ए-रुब
हज़रत जूनादा बिन काब
हज़रत अमीर बिन जानादा
हज़रत नईम बिन अजलान
हज़रत साद बिन हार्स

खास-अमी

हज़रत जोहेर बिन कैन
हज़रत सलमान बिन मजारीब
हज़रत सईद बिन उमर
हज़रत अब्दुल्लाह बिन बशीर

कानदी और गफ्फारी

हज़रत याजीद बिन ज़ैड कानदी
हज़रत हर्ब बिन उम्र-उल-कैस
हज़रत ज़हीर बिन आमेर
हज़रत बशीर बिन आमेर
हज़रत अब्दुल्लाह अरवाह गफ्फारी
हज़रत झोन ग़ुलाम आबु ज़र गफ्फारी

कलबी

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमीर
हज़रत अब्दुल-आला बिन याजीद
हज़रत सलीम बिन अमीर

अज़दी

हज़रत कासिम बिन हबीब
हज़रत जैद बिन सलीम
हज़रत नोमान बिन उमेर

अबदी

हज़रत याजीद बिन सबीत
हज़रत अमीर बिन मुस्लिम
हज़रत सैफ बिन मालिक

तमीमि

हज़रत जाबिर बिन हज्जाजी
हज़रत मसूद बिन हज्जाजी
हज़रत अब्दुल रेहमान बिन मसूद
हज़रत बेकर बिन हाई
हज़रत अममर बिन हसन ताई

तघ्लीबी

हज़रत जुरघामा बिन मालिक
हज़रत कनाना बिन अतीक
जहानी और तमीमि
हज़रत अकबा बिन सल्त
हज़रत हूर बिन याजीद तमीमि
हज़रत अकबा बिन सल्त
हज़रत हबाला बिन आली शीबानी
हज़रत क्नाब बिन उमेर
हज़रत अब्दुल्लाह बिन यकतीर
हज़रत गुलाम-ए- तुर्की

ये सारे इमाम हुसैन के जान-निसार है जो कर्बला की जंग में शहीद होने का सरफ हासिल हुआ।

सारे जन-निसार जब शहीद होगाए तो अंत मे इमाम हुसैन खेमे में से अपने 6 माह के बेटे से आखरी बार मिलने की तलब की। जब वो नन्हें से मासूम आली असगर को गले लगाया तभी याजीदयौं की तरफ से तीर बरसाए गए। और एक तीर मासूम आली असगर की गर्दन पर लगी। और वो नन्हें मासूम आली असगर भी शहीद होगाए। तभी इमाम-ए-हुसैन ने खून को अपने हाथ मे लिया और कहा “या अल्लाह अगर तू राज़ी है तो मै भी राज़ी हूँ ”

इमाम-ए-हुसैन की शहादत:

जब इमाम हुसैन जख्मो से चूर खड़े थे। तो शिमर जो की याजीद के फौज का हैड था, उसने कहा तुम लोग क्यों नहीं क़तल करते हो हुसैन को, तभी एक ने उनके कंधे पर वार किया और दूसरे कमबख्त ने इमाम हुसैन के सिने पर वार किया। फिर इमाम हुसैन जमीन पर गिर गए। और फिर ये ज़ालिम याजीदयों ने आपका सर तन से जुदा कर दिया। और इस तरह इमाम हुसैन कर्बला की धरती पर शहीद होगाए।

अतः इमाम हुसैन दूनया वालों को ये पैगाम देगाए, के ए दूनया के मुसलमानो तुम हर हाल में नमाज़ अदा करना। और जहां पर जान की बाज़ी लगानी पड़े तो तुम दिन-ए-इस्लाम के लिए जान दे देना मगर अपने दीन से सौदा नहीं करना।

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